प्रेम रावत
दुःख का आना और दुःख का जाना इन दो चीज़ों में कोई सम्बन्ध है?
क्योंकि बैठे-बैठे सोंच रहे हो तुम कि, "दुःख चले जाएगा, तभी तो सुख आएगा।"
"और जब सुख आ गया तो दुःख की क्या ज़रुरत है? दुःख चले जाएगा अपने आप ही।"
नहीं?
क्यों जी?
और अगर मैं तुमको कहूँ, अगर मैं तुमको कहूँ कि सुख का आना और दुःख का जाना इसमें कोई कनेक्शन नहीं है।
सारा माहौल दुखी हो सकता है फिर भी तुम सुखी हो सकते हो। दुःख की बात नहीं कही। सुख की बात कही।
तुम समझते हो कि तुम्हारे जीवन के अंदर जो परिस्थितियाँ हैं अगर ये बदल जाएं, तो तुम सुखी हो जाओगे।
ये नहीं होता है। ये नहीं होता है।
तो क्या ये संभव है कि जो भी दुःख की परिस्थिति हो उस परिस्थिति में होने के बावजूद भी तुम सुखी हो सकते हो?
बहुत बड़ी बात हो गई। बहुत बड़ी बात के लिए हाँ कर दिया तुमने। बहुत ही बड़ी बात के लिए हाँ कर दिया।
अब अगर इसके बारे में थोड़ा भी सोंचो तो ये सोंचना पड़ेगा, कि सुखी होना कितना सुलभ है। कितना सरल है।
मुझे ये सारी चीज़ें बदलने की ज़रुरत नहीं है। मुझे ये सारी चीज़ें बदलने की ज़रुरत नहीं है।
अर्थात:रात्रि में है अँधेरा क्योंकि सूरज ढल गया है। बत्तियां अभी ऑन नहीं हैं, चालू नहीं हैं। अँधेरा है।
अगर जेब में फ़्लैश-लाइट है, टोर्च है, तो उसको निकालो, चालू करो, और उजाला पाओ बैठ करके तुम भगवन सूर्य को कहो, "जल्दी से उदय हो जाइये, जल्दी से उदय हो जाइये, जल्दी से उदय हो जाइये", उससे कुछ नहीं होगा।
यही हमारी चूक रहती है।
जब भगवन से हम प्रार्थना करते हैं, तो क्या प्रार्थना करते हैं?
"हमारे दुखों को हरो।"
ये नहीं कि, "सुख को हमारे पास लाओ।" क्योंकि सुख का झील, सुख का कूआँ, तुम्हारे अंदर हमेशा, हमेशा है।
तुमको कहीं जाने की ज़रुरत नहीं है, तुमको किसी से लाने की ज़रुरत नहीं है, तुमको किसी चीज़ की ज़रुरत नहीं है।
वह तुम्हारे अंदर है।
प्रेम रावत
दुनियादारी की जो बातें हैं, उनमे लोग ऐसा उलझ जाते हैं कि पूछो मत।
यहाँ कोई ऐसा नहीं है बैठा हुआ, जिसको यह नहीं मालूम हो कि एक दिन जाना है। और कितने दिन तुम यहाँ रहोगे। ये जो तुम्हारा समय है, ये कितना लम्बा है?
सोंचने की बात है। सोंचना इसके बारे में। अपने आप को बिना सोंचे जवाब मत देना।
सोंचना।
जो तुम्हारा यहां समय है, जबसे तुम पैदा हुए और जिस दिन तुमको जाना है, वह समय कितना लम्बा है ? तुमको तो लम्बा लगता है। तुमको तो 24 घाटे लम्बे लगते हैं। तुमको एक दिन ज़्यादा लम्बा लगता है।
दो दिन...कोई कह दे, "हाँ चार दिन के बाद आएगा।" "चार दिन के बाद? अरे यह तो बहुत समय हो गया।"
हर एक चीज़ तुमको तुरंत चाहिए तुरंत, तुरंत, तुरंत, तुरंत, तुरंत। हर एक चीज़।
लोगों को 15 घाटे हवाई जहाज में बैठना पड़ता है, लोगों को अच्छा नहीं लगता। वो चाहते हैं कि हवाई जहाज उड़े और नीचे उतरे। बस, पहुँच जाएं, तुरंत। बस में, तुरंत। और एक घंटे की यात्रा है, दो घंटे की यात्रा है, तीन घंटे की यात्रा है, चार घंटे की यात्रा है, ये तुमको बड़ी लगती है। बहुत ज़्यादा है। पर तुम्हारी यात्रा, तुम्हारी। बस की नहीं, टैक्सी की नहीं, स्कूटर की नहीं, हवाई जहाज की नहीं, पानी के जहाज की नहीं, तुम्हारी यात्रा कितनी लम्बी है ?
अगर किसी से कहा जाए कि, "पछत्तर साल के बाद मिलेंगे", तुमको नहीं लगेगा कि पछत्तर साल तो बहुत होते हैं? पछत्तर साल के बारे में तो मच्छर सोंच भी नहीं सकता है कि वो कितना समय है।
पर जो तुमको लगता है कि अभी तुम्हारे पास समय है, ये माया का प्रकोप है। क्योंकि यह है नहीं। और उससे पहले कि तुम संभल पाओ, जाने का समय हो जाएगा। कोई नहीं रहेगा।
सब कुछ बदलेगा।
तुम बदलाव नहीं चाहते हो पर बदलाव होता है तुम्हारे जीवन में, और एक ऐसा बदलाव होगा तुम्हारे जीवन में, ऐसा बदलाव होगा, ऐसा बदलाव होगा, जिसके बारे में तुम सोंच भी नहीं सकते।
तो मैं ये सब कुछ क्यों कह रहा हूँ ? मैं इस लिए कह रहा हूँ, कि, "तुमको अपने जीवन में सबसे पहली चीज़ क्या होनी चाहिए", इसको समझना बहुत ज़रूरी है।
क्यों ? क्यों ज़रूरी है ?
इस लिए ज़रूरी है, कि जितना समय तुम चाहते हो, या जितना समय तुम सोंचते हो कि तुम्हारे पास है, उतना समय तुम्हारे पास नहीं है। तो जब समय नहीं है तो सबसे पहले वो करना चाहिए जो सबसे ज़रूरी है। नहीं ?
"मानुष जनम अनमोल रे, माटी में न रोल रे अब तो मिला है, फिर न मिलेगा, कभी नहीं, कभी नहीं, कभी नहीं रे।"
प्यार किससे होना चाहिए?
प्यार उससे होना चाहिए जो तुम्हारा प्यार तुमको दे सके। ऐसा प्यार, ऐसा प्यार कि जिसकी हद नहीं।
और वो कहां है? वो भी तुम्हारे अंदर है।
सबसे, वो चीज जो तुमको सबसे बड़ा सुख दे सके, वो भी तुम्हारे अंदर है।
शांति तुम्हारे अंदर है।
वो, जिसने सारी सृष्टि की रचना की है, और संचालन करता है, वो भी तुम्हारे अंदर है।
जो सचमुच में दया और करुणा का सागर है, वो भी तुम्हारे अंदर है।
जो तुमसे सचमुच में प्यार करता है, वो भी तुम्हारे अंदर है।
जिसका रूप ही प्रकाश है, वो भी तुम्हारे अंदर है।
जिसको जानने से कोई संशय नहीं रहता, वो भी तुम्हारे अंदर है।
इसलिए, अपने आप को जानना बहुत जरूरी है। क्योंकि अपने आप को नहीं जानते हो, तो तुम दुख में फंसे रहोगे, फंसे रहोगे, फंसे रहोगे, फंसे रहोगे।
मन के बहुत तरंग है, छिन छिन बदले सोए, एक ही रंग में जो रहे, ऐसा बिरला कोय।"
समझ लो, किस चीज के पीछे भागना है। भागना तो तुमको है, भागना तो तुमको है, पर कहां भागोगे? किसके पीछे भागोगे? एक वो, जो तुम्हारे हृदय में विराजता हैं, उससे अपना संबंध बनाओगे, उससे अपना तार जोड़ोगे, तो वो चीजें, जो तुमको दुखी करती थीं, वो होंगी पर तुमको दुखी नहीं होना पड़ेगा। इसका ये मतलब नहीं है कि अगर तुम अपने पिता से प्रेम करते हो, तो तुम्हारे पिता इस संसार से कभी नहीं उठेंगे। नहीं। उठेंगे!ये तो इस संसार की रीत है,तुम्हारे मां बाप, तुम्हारे सामने ही जाएंगे। ना तो उनको दुख होगा कि तुम पहले चले गए, और वो दुख बहुत ही बड़ा दुख होता है।
तो भाई वो चीज़ें, जिनको तुम समझते हो कि ये तुमको दुखी करती हैं, और तुम उनको रोकने की कोशिश करते हो। उस रोकने में अपना सारा समय, जो अपना टाइम बर्बाद करते हो, उसमें अपना टाइम बर्बाद करने की तुमको जरूरत नहीं है, अगर तुम वो कनेक्शन उसके साथ बनाए रखो। वो चीजें होंगी। विद्वान कौन है? विद्वान कौन है? जिसके लिए सुख भी और दुख भी, वो दोनों की ही जो टेंपरेरीनेस है, उसको देखता है। ना सुख रहेगा ना दुख रहेगा। जब दुखी हो, तो जानो की थोड़ी देर इंतजार करो, सुख आएगा। जब सुख चल रहा है तो थोड़ी देर इंतजार करो, दुख आएगा। थोड़ी देर और इंतजार करो, सुख आएगा। थोड़ी देर और इंतजार करो, दुख आएगा। ये तो एक चक्कर है इस चरखे का, जो चलता रहता है, चलता रहता है, चलता रहता है।
तो मैं जीवन में उम्मीद को कैसे समझूँ ? मैं उम्मीद को कैसे पूरा करूँ ? बहुत आसान है। अब चार बिन्दु हैं और मैने इन चार बिंदुओं के बारे में सोवेटो में भी बात की थी।
खुद को जानने से शांति मिलेगी। और बाकी तीन बिंदु आपके जीवन की गुणवत्ता बढ़ाएंगे। आपको ख़ुशी देंगे।
तो दोबारा, पहला अंक है — खुद को जानना।
दूसरा अंक है — जीवन में कृतज्ञता होना।
तीसरा अंक होगा — दूसरे लोग क्या सोचते हैं, इसके बारे में मत सोचिये।
तो "हे भगवान!" जानते हैं, आपको समझना होगा, वो इंसान आपके बारे में नहीं सोच रहा। जानते हैं क्या सोच रहा है ? वो ये सोच रहा है कि बाकी लोग उसके बारे में क्या सोचते हैं। वो आपके बारे में नहीं सोच रहे। और बस आप इस खेल में फंसे हुए हैं कि वो इंसान आपके बारे में क्या सोच रहा है। उन्हें फर्क नहीं पड़ता। उन्हें वाकई फर्क नहीं पड़ता। पर हम ये सब बना लेते हैं। तो जो भी...
और फिर चौथी चीज़ है — हर बार आप विफल हों, विफलता को अपनाइये नहीं। ये है उम्मीद के बारे में और लोग मुझसे पूछते हैं हर बार, "जब मैं विफल होता हूँ, मुझे उसे अपनाना नहीं? पर मैं विफलता को पूरे जीवन अपनाता आया हूँ। मैं कैसे न अपनाऊं उसे ?"
बात ये है, जब आप बचपन में चलना सीख रहे थे, आप कई बार गिरे। कई बार, क्योंकि ये एक अजीब स्थिति है। आप, आप सीखना ... आप सीखना चाहते थे कि कैसे चलें। बिलकुल, आप पढ़ नहीं सकते और आपको अपनी माँ की आवाज़ पसंद है पर समझते नहीं हैं कि वो क्या कह रही है। और आप यहां हैं। आपको वो करना है जो आपने पहले कभी नहीं किया। और आपको कोई प्रशिक्षण नहीं दिया गया है। आप नहीं जा सकते अपने iPad पर या YouTube पर और लिखने की कोशिश करें "मुझे चलना सिखाइये"। क्योंकि आपको तो लिखना भी नहीं आता। और अब ये आपके ऊपर है। तो आप उठते हैं, हिलते हुए, काफी ज्यादा, क्योंकि अब तक आपकी टांगें, ये मांसपेशियाँ चलने लायक नहीं हुई हैं। आप उठते हैं और हिल रहे हैं, आप कदम लेने की कोशिश करते हैं और गिर जाते हैं।
और अगर यही आपको आज करना होता, आप कहते, "कोशिश की, मुझसे नहीं हुआ। मुझे उस बारे में बात नहीं करनी।"
है न ? बस, रुक जाते। विफलता स्वीकार लेते। ख़त्म। दरवाज़ा बंद।
"मुझे याद मत दिलाइये। ये बुरा दिन है, बहुत खराब दिन। मुझे याद नहीं करना। सफलता नहीं मिली।"
क्योंकि आपने विफलता को नहीं स्वीकारा, आपको उम्मीद नज़र आई और आप उठे और आपने फिर कोशिश की। फिर भी नहीं हुआ। आप फिर विफल रहे, पर फिर भी उसे नहीं अपनाया। आपके पास क्या बचा था ? जब आप विफलता को नहीं अपनाते, आपके पास क्या बचेगा ? बचेगी सिर्फ उम्मीद। और इस पूरे वक्त, क्योंकि आपने उम्मीद को अपनाया और विफलता को ठुकराया।
जैसे ही आप विफलता से "विफल" हटा लेते हैं, विफल खुद में इतना ताकतवर शब्द नहीं है, पर अगर विफलता और विफल को साथ रखते हैं तो वो सबकुछ है। सबकुछ है!
पर आप असफल होंगे, क्योंकि जीवन में हर काम के लिए अनुदेश नहीं है। जीवन में ऐसी बातें होंगी आपके साथ और आपके आस-पास जिनका आप सामना करेंगे, जो आपने पहले नहीं देखीं हैं। और या तो आप जल्दबाज़ी में हों, वो फैसला लेते हैं या फिर बिना जानते ही आप फैसला ले सकते हैं, जो गलत हो और आप विफल हो जाएं। और विफल हुए, और ये ठीक है दुनिया में कुछ नहीं बदला। दुनिया में किसी ने कुछ नहीं कहा। नहीं, कुछ नहीं बदला। उठिये और चलिए, ये आप पर है या वहीं रहिये, ये भी आप पर है।
— प्रेम रावत
प्रेम रावत
हम यह सोचें कि हमको यह जो जीवन मिला है, ये किस तरीके से हम इसको पूरा कर सकें, किस तरीके से इसको सफल कर सकें।
परंतु इस बारे में ज्यादा लोग नहीं सोचते हैं। सोचते ये हैं लोग कि हमारी उन्नति कैसे हो ? जब उन्नति पहले से ही हो रखी है पर समझ नहीं पा रहे हैं, देख नहीं पा रहे हैं, जान नहीं पा रहे हैं, तो उन्नति होगी कैसे?
भगवान से आशीर्वाद मांगते हैं लोग, पर भगवान ने जो आशीर्वाद पहले से ही दिया है, उसको स्वीकार करने के लिए कोई तैयार नहीं है, तो फिर आशीर्वाद का फल क्या होगा ? क्योंकि आनंद चाहिए मनुष्य को। किसी भी रूप में उसको आनंद चाहिए। परंतु अगर उसके जीवन के अंदर सबकुछ है, और आनंद नहीं है तो उसको यही लगेगा कि मेरी जिंदगी सूनी है। सूनी है!
सारी आशाओं का कुंआ, जब मनुष्य के अंदर पहले से ही है, तो यह कैसे संभव है कि मनुष्य निराश हो जाए? आदमी समझे, सोचे, देखे, अनुभव करे कि जिस चीज की उसको जरूरत है, जिस चीज की उसको प्यास है, जिस चीज की उसको चाह है सबकुछ उसके पास है।